वैदिक साहित्य श्वेताश्वर उपनिषद में भगवन का वर्णन इस प्रकार हुआ है-
तमीश्वराणां परमं महेश्वरं तं देवतानां परमं च दैवतम् । पतिं पतीनां परमं परस्ताद्- विदाम देवं भुवनेशमीड्यम् ॥ 6.7॥ न तस्य कार्यं करणं च विद्यते न तत्समश्चाभ्यधिकश्च दृश्यते । परास्य शक्तिर्विविधैव श्रूयते स्वाभाविकी ज्ञानबलक्रिया च ॥ 6.8॥
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परमेश्वर समस्त नियन्ताओं के नियंता हैं और विभिन्न लोकपालकों में सबसे महान हैं। सभी उनके अधीन हैं। सारे जीवों को परमेश्वर से ही विशिष्ट शक्ति प्राप्त होती है, जीव स्वयं श्रेष्ठ नहीं है। वे सभी देवताओं द्वारा पूज्य हैं और समस्त संचालकों के भी संचालक हैं। अतः वे समस्त भौतिक नेताओं तथा नियंताओं से बढ़कर हैं और सबों द्वारा आराध्य हैं उनसे बढ़कर कोई नहीं है और वे ही समस्त कारणों के कारण हैं।
उनका शारीरिक रूप सामान्य जीव जैसा नहीं होता। उनके शरीर तथा आत्मा में कोई अंतर नहीं है। वे परम हैं। उनकी सारी इंद्रियां दिव्य हैं। उनकी कोई भी इंद्रिय अन्य किसी इंद्रिय का कार्य संपन्न कर सकती है। अतः न तो कोई उनसे बढ़कर है न ही उनके तुल्य है। उनकी शक्तियां बहुरूपिणी हैं, फलतः उनके सारे कार्य प्रकृतिक अनुक्रम के अनुसार संपन्न हो जाते हैं।
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